फर्जी पत्रकारों को आखिर कौन दे रहा है संरक्षण? धार्मिक सौहार्द बिगाड़ना कोई छोटा-मोटा जुर्म नहीं कठोरतम कार्रवाई की उठी मांग तामीर हसन श...
फर्जी पत्रकारों को आखिर कौन दे रहा है संरक्षण?
धार्मिक सौहार्द बिगाड़ना कोई छोटा-मोटा जुर्म नहीं कठोरतम कार्रवाई की उठी मांग
तामीर हसन शीबू
जौनपुर। जिला महिला अस्पताल में हाल ही में हुई शर्मनाक घटना ने न केवल पत्रकारिता की साख पर सवाल खड़ा किया है, बल्कि प्रशासन की निष्पक्षता पर भी गंभीर प्रश्नचिह्न लगा दिया है।
अस्पताल परिसर में धार्मिक उन्माद भड़काने, महिला की निजता भंग करने और सरकारी संस्थान की छवि धूमिल करने के प्रयास के आरोप सामने आए हैं। मामले के उजागर होने के बाद जनपद के लोगो की ज़ुबान पर एक ही सवाल गूंज रहा है जब जिला प्रशासन ने पहले ही कुछ व्यक्तियों को फर्जी पत्रकार’ घोषित कर रखा है, तो कार्रवाई में देरी क्यों? आखिर उन्हें संरक्षण कौन दे रहा है?”
सूत्रों के अनुसार, वायरल किए गए वीडियो के पीछे निजी स्वार्थ और सस्ती लोकप्रियता हासिल करने की कोशिश रही हो सकती है।
लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या अब पत्रकारिता का उपयोग समाज में नफरत फैलाने के औजार के रूप में किया जा रहा है?
और क्या ऐसे फर्जी पत्रकारों को संरक्षण देने वाली कोई अदृश्य ताकत मौजूद है?जनपद के आम नागरिकों और पत्रकार संगठनों ने प्रशासन से कठोरतम कार्रवाई की मांग की है, ताकि भविष्य में कोई भी व्यक्ति पत्रकारिता की आड़ में कानून की मर्यादा तोड़ने का दुस्साहस न कर सके।यह सिर्फ महिला अस्पताल की गरिमा का मामला नहीं है, बल्कि यह समाज की संवेदनशीलता और सच्ची पत्रकारिता की विश्वसनीयता का प्रश्न है।

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