बीएसए का निरीक्षण या दिखावा?गड़बड़ियाँ मिलीं, पर जिम्मेदार कौन? बीएसए खुद सवालों के घेरे में तामीर हसन शीबू जौनपुर । बेसिक शिक्षा अधिकारी (B...
बीएसए का निरीक्षण या दिखावा?गड़बड़ियाँ मिलीं, पर जिम्मेदार कौन? बीएसए खुद सवालों के घेरे में
तामीर हसन शीबू
जौनपुर। बेसिक शिक्षा अधिकारी (BSA) डॉ. गोरखनाथ पटेल द्वारा किया गया औचक निरीक्षण एक बार फिर शिक्षा व्यवस्था की पोल खोल गया। लेकिन असली सवाल ये है—क्या वाकई ये पोल खुली है, या सिर्फ एक स्क्रिप्टेड ड्रामा दोहराया गया है, जिसमें सिर्फ नीचे के कर्मचारी ही खलनायक होते हैं और ऊपरी अधिकारी हर बार 'जिम्मेदार' होते हुए भी 'निर्दोष' बच निकलते हैं?
पत्नी की जगह पति करता रहा हाजिरी—और BSA को अब तक भनक तक नहीं?
क्या यह पहला मौका है जब कोई शिक्षक अपनी पत्नी की जगह हस्ताक्षर करता पाया गया? अगर नहीं, तो फिर इतने समय तक बीएसए की नज़रे कहाँ थीं? क्या निरीक्षण सिर्फ फोटो खिंचवाने और फाइलें सजाने का माध्यम बनकर रह गया है?
एक महिला शिक्षिका महीनों तक स्कूल न आईं, लेकिन उनकी उपस्थिति नियमित बनी रही। उनके पति खुद उनके लिए हस्ताक्षर करते रहे। ये कोई छोटी चूक नहीं, बल्कि एक सोची-समझी प्रशासनिक विफलता है। यह भ्रष्टाचार की वो चुप्पी है जो ऊपर तक फैली हुई है।
सफाई नहीं, रंगाई नहीं, रजिस्टर अधूरा, भोजन अधूरा—पर जिम्मेदार सिर्फ शिक्षक?
विद्यालयों की स्थिति बदहाल है। साफ-सफाई के नाम पर जीरो, रंगाई-पुताई के नाम पर जीरो, स्टॉक रजिस्टर अधूरी, बच्चों की उपस्थिति न्यूनतम—लेकिन बीएसए ने हमेशा की तरह जिम्मेदारी सिर्फ शिक्षकों पर डाल दी।
जिन विद्यालयों में लाखों की ग्रांट आती है, वहां हिसाब-किताब की कोई फाइल पेश नहीं की गई। क्या बीएसए कार्यालय कभी इन खर्चों की मॉनिटरिंग करता है या फिर वही "साल में एक बार निरीक्षण" ही सारी जिम्मेदारी पूरी कर देता है?
निर्माण कार्यों में धांधली—क्या आँखें बंद रखता है शिक्षा विभाग?
पीएम श्री योजना के तहत हो रहे निर्माण कार्यों को लेकर भी गंभीर सवाल उठे हैं। मानकों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं, लेकिन काम रुकता नहीं। सवाल ये है—क्या विभाग आंखें मूंदे बैठा है, या फिर ठेकेदारों और अधिकारियों के बीच कोई मौन समझौता है?
टैबलेट की कहानी: मिला सब कुछ, लेकिन इस्तेमाल में कुछ भी नहीं
तकनीकी शिक्षा की बात करने वाले विभाग ने विद्यालयों को टैबलेट तो दे दिए, पर उपयोग शून्य पाया गया। क्या कभी किसी ने यह जानने की कोशिश की कि शिक्षक इसका इस्तेमाल क्यों नहीं कर रहे? या फिर योजनाएं सिर्फ बजट खपत के लिए बनाई जा रही हैं?
छात्र गायब, स्कूल खाली—तो फिर विभाग क्या कर रहा है?
नामांकन तो दिखा दिया गया 70-80 बच्चों का, पर उपस्थित मिले सिर्फ 15-20। बच्चों को स्कूल लाने के लिए अभिभावकों से समन्वय, मोहल्ला भ्रमण, बाल संरक्षण अभियान—कागज़ों में तो खूब कुछ है, लेकिन ज़मीन पर सिर्फ सन्नाटा। और जब सवाल उठता है, तो जवाब में होता है—"शिक्षकों की लापरवाही।"
सबसे बड़ा सवाल: क्या BSA खुद जवाबदेह होंगे?
हर बार निरीक्षण के बाद कुछ शिक्षकों की सैलरी रोकी जाती है, एकाध पर कार्रवाई होती है, और फिर सिस्टम वापस अपनी पुरानी रफ़्तार पर चल पड़ता है। लेकिन सवाल ये है—क्या कभी किसी बीएसए से भी जवाब तलब किया जाएगा? क्या उन अफसरों से कोई पूछेगा जो सिर्फ कागज़ों में अभियान चलाते हैं और ज़मीनी हकीकत से नज़रें चुराते हैं?
शिक्षा व्यवस्था की सड़ांध अब किसी से छुपी नहीं है। लेकिन जब तक कार्रवाई सिर्फ नीचे के कर्मचारियों पर होती रहेगी और ऊपरी तंत्र खुद को पाक-साफ साबित करता रहेगा, तब तक हर निरीक्षण एक 'नाटक' ही रहेगा। और असली सुधार—सिर्फ एक सपना।
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