मोबाइल की लत से बच्चों में बढ़ रहा ऑटिज्म, याददाश्त और व्यवहार पर भी असर — डॉ. मुकेश शुक्ल नवजात शिशु एवं बाल रोग विशेषज्ञ ने चेताया, बच्चो...
मोबाइल की लत से बच्चों में बढ़ रहा ऑटिज्म, याददाश्त और व्यवहार पर भी असर — डॉ. मुकेश शुक्ल
नवजात शिशु एवं बाल रोग विशेषज्ञ ने चेताया, बच्चों को गैजेट्स से दूर रखे माता-पिता
तामीर हसन शीबू
जौनपुर। शहर के जाने-माने नवजात शिशु एवं बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. मुकेश शुक्ल ने चेतावनी दी है कि मोबाइल फोन, टीवी और अन्य डिजिटल उपकरणों का अधिक प्रयोग करने वाले बच्चों में ऑटिज्म (Autism) के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। यह न केवल उनकी मानसिक और सामाजिक क्षमता को प्रभावित कर रहा है, बल्कि शारीरिक बीमारियों जैसे मोटापा और हाईपरटेंशन का भी कारण बन रहा है।
डॉ. शुक्ल ने कहा कि बच्चों में लाइफस्टाइल डिसऑर्डर, नींद की गड़बड़ी, आंखों की रोशनी कमजोर होना, और बोलने व समझने में कठिनाई जैसी समस्याएं अब आम होती जा रही हैं। विशेषकर जो बच्चे मोबाइल को बहुत करीब से देखते हैं, उनकी दृष्टि पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
क्या है ऑटिज्म?
ऑटिज्म एक विकास संबंधी विकलांगता है, जो बच्चे के सोशल, कम्युनिकेशन और बिहेवियर स्किल्स को प्रभावित करता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनिया भर में 160 में से एक बच्चा ऑटिज्म से प्रभावित होता है। इसके पीछे जेनेटिक और पर्यावरणीय कारणों का मिश्रण जिम्मेदार माना जाता है।
छोटे बच्चों में कैसे पहचानें ऑटिज्म के लक्षण?
अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स के अनुसार, एक साल की उम्र से पहले ही ऑटिज्म के लक्षण नजर आने लगते हैं, जो दो से तीन साल की उम्र में और स्पष्ट हो जाते हैं। सामान्य लक्षणों में शामिल हैं:
नाम पुकारने पर प्रतिक्रिया ना देना
आंखों में आंखें डालकर बात न करना
चीजें शेयर न करना
अकेले रहना पसंद करना
फिजिकल टच से बचना
भावनाओं को जाहिर न कर पाना
कम्युनिकेशन स्किल्स में कमी के संकेत
बोलने में देरी
शब्द या वाक्य दोहराना
सवालों के गलत जवाब
मजाक न समझ पाना
प्रतिक्रिया न देना
व्यवहार में भी दिखते हैं बदलाव
एक ही काम को बार-बार करना
किसी एक चीज या खिलौने से ही चिपके रहना
गुस्सा या हिंसात्मक व्यवहार
सोने-खाने की अनियमितता
भावनात्मक असंतुलन
क्या है वर्चुअल ऑटिज्म?
डॉ. शुक्ल बताते हैं कि 4 से 5 साल की उम्र के बच्चों में एक नई स्थिति उभर रही है जिसे वर्चुअल ऑटिज्म कहा जाता है। यह मोबाइल, टैबलेट, टीवी या कंप्यूटर के अत्यधिक इस्तेमाल से पैदा हो रही समस्या है, जिसमें बच्चा सामाजिक संवाद से कटने लगता है और बोलने-समझने में कठिनाई महसूस करता है।
बच्चों की याददाश्त पर असर
लगातार टीवी और मोबाइल पर किड्स शो या कार्टून देखने वाले बच्चों की याददाश्त पर भी नकारात्मक असर होता है। ऐसे बच्चे बार-बार वही बातें दोहराते हैं जो वे स्क्रीन पर देखते हैं, बिना यह समझे कि उसका क्या मतलब है।
पैरेंट्स को क्या करना चाहिए?
डॉ. शुक्ल ने परिजनों से अपील की कि वे बच्चों को दिन में अधिकतम 45 मिनट तक ही मोबाइल चलाने की अनुमति दें और उन्हें ज्यादा से ज्यादा शारीरिक गतिविधियों और सामाजिक मेलजोल के लिए प्रेरित करें।
साइबर क्राइम का भी खतरा बढ़ा
उन्होंने यह भी चेताया कि डिजिटल युग में बच्चों का गैजेट्स पर बढ़ता समय उन्हें साइबर क्राइम जैसे अपराधों की ओर भी खींच सकता है। ऐसे में माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चों के ऑनलाइन समय पर नियंत्रण रखें और उनके साथ ज्यादा वक्त बिताएं।
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