मीडिया माफिया सिंडिकेट - 6 भाग 2 ब्लैकमेलिंग इंडस्ट्री हाथी, मोहरा और सांप की तिकड़ी तिल से पहाड़ नहीं, ‘पैसा’ बनाया जाता है ...
मीडिया माफिया सिंडिकेट - 6 भाग 2
ब्लैकमेलिंग इंडस्ट्री हाथी, मोहरा और सांप की तिकड़ी
तिल से पहाड़ नहीं, ‘पैसा’ बनाया जाता है
तामीर हसन शीबू
जौनपुर इस मीडिया सिंडिकेट का असली धंधा है ब्लैकमेलिंगऔर इस धंधे के सबसे सक्रिय और ज़मीनी खिलाड़ी हैं हाथी, मोहरा और सांप।
ये तीनों मिलकर ऐसा नेटवर्क चलाते हैं जो फर्ज़ी खबरों से लेकर धमकी, जबरन वसूली और केस वापसी तक फैला हुआ है।
हाथी रेलवे से अस्पताल तक, दलाली का खंभा
"हाथी" सुबह नहीं, दोपहर के बाद उठता है क्योंकि उसका असली काम दिन के उजाले में नहीं, सिस्टम की अंधेरों में होता है।
रेलवे:
जौनपुर जंक्शन के अनारक्षित टिकट काउंटर पर इसका 'स्थायी कब्जा' है।
दलाली, टिकट ब्लॉकिंग, TTE से सेटिंग — सबमें इसकी पैठ है।
अस्पताल:
जिला अस्पताल के इमरजेंसी रजिस्टर को रोज़ स्कैन करता है।
गंभीर केस उठाता है, फिर उनके परिवारों को फर्जी पत्रकारों के जरिए डरा-धमका कर खबर छापने की धमकी देता है। जुगाड़ की ताकत:
इसकी पहुंच रेलवे विभाग के कुछ 'सस्पेंडेड लेकिन एक्टिव' कर्मचारियों से लेकर जिला अस्पताल के स्टाफ तक है।
मोहरा – अवैध हॉस्पिटल्स का ‘सेफ्टी सर्टिफिकेट’
"मोहरा" इस गिरोह का हेल्थ सेक्टर एक्सपर्ट है लेकिन डिग्री नहीं, ‘डीलिंग’ में माहिर।
अवैध हॉस्पिटल्स, एक्सपायरी दवाएं, बिना रजिस्ट्रेशन लैब्स सब इसके ग्राहक हैं।
इन्हें "कवच" देता है "अगर कोई अधिकारी आया तो हमें फोन करो।"
कैसे होती है वसूली?
पहले डर फैलाओ आपके खिलाफ शिकायत हो गई है।
फिर सुलह का रास्ता दिखाओ "हमें कुछ नहीं चाहिए, बस नाम मत आने दो। और यहीं से शुरू होता है पैसों का खेल। महीने का ‘फिक्स रेट’, और कभी ‘रेड अलर्ट’ बोनस।
सांप – खामोश धमकी देने वाला एजेंट
सांप किसी न्यूज़ चैनल का रिपोर्टर नहीं,बल्कि उस ‘भय की फील्ड यूनिट’ का हिस्सा है जिसे सरगना चलाता है।
कैसे काम करता है?
केसों में पीड़ितों को धमकाना: "समझौता कर लो वरना सोशल मीडिया पर जलील कर देंगे।"
वादियों से केस वापसी का दबाव: "पुलिस से बोल देंगे कि झूठा मामला है।"
अफसरों को डराना: "आपका नाम भी न्यूज़ में आ सकता है। बोलता कम है, भेजता ज़्यादा है
डिजिटल धमकियां, एडिटेड वीडियो, और झूठे संवाद इसके मुख्य हथियार हैं।
इस तिकड़ी की ताकत प्रशासन की खामोशी
इन तीनों का खेल तभी सफल हो पाता है जब उन्हें सिस्टम में बैठी चुप्पी का साथ मिले।
हाथी को रेलवे अफसर पहचानते हैं, लेकिन अनदेखा करते हैं।मोहरा को स्वास्थ्य विभाग वाले पहचानते हैं, लेकिन शिकायत दर्ज नहीं करते।
सांप को पुलिस वाले भी जानते हैं, लेकिन FIR तक नहीं पहुंचते
जो कोई भी इस सिंडिकेट के खिलाफ आवाज़ उठाता है, उसके लिए तीन रास्ते तैयार किए जाते हैं:
1. डराओ: "हम तुम्हारे बारे में न्यूज़ चलाएंगे।"
2. बदनाम करो: एडिट की गई पोस्ट्स और झूठे आरोप सोशल मीडिया पर डालो।
3. चुप कराओ: सांप के ज़रिए घरवालों को धमकी, पड़ोसियों तक गंद फैलाओ। इसी वजह से ज़्यादातर लोग या तो चुप रहते हैं, या सिंडिकेट से समझौता कर लेते हैं।
अगला भाग जल्द:
"प्रशासन कब तक रहेगा मौन? मीडिया माफिया सिंडिकेट को मिल रहा है किस स्तर का संरक्षण?"
साथ ही
"कुछ ईमानदार पत्रकारों ने कैसे इस गंदगी से अलग रहकर अपनी साख बचाई है?"
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