मीडिया माफिया सिंडिकेट - 6 भाग – 1 : नक़ाबपोश खबरनवीस तामीर हसन शीबू जौनपुर। शहर की गलियों में इन दिनों एक चर्चा गर्म है –सोशल मीडिया पर पत...
मीडिया माफिया सिंडिकेट - 6
भाग – 1 : नक़ाबपोश खबरनवीस
तामीर हसन शीबू
जौनपुर।शहर की गलियों में इन दिनों एक चर्चा गर्म है –सोशल मीडिया पर पत्रकार, धरातल पर दलाल।"एक ऐसा कथित मीडिया सिंडिकेट, जिसने पत्रकारिता की छांव में अपनी काली छाया फैला दी है। नाम है — "मीडिया माफिया सिंडिकेट - 6"।
यह गिरोह कोई आम समूह नहीं, बल्कि एक सुनियोजित नेटवर्क है। यह छह लोग मिलकर शहर की हर उस व्यवस्था को निगल रहे हैं जो आम जनता के हक में खड़ी होनी चाहिए। कानून, चिकित्सा, नगर प्रशासन और यहां तक कि रेलवे – सब पर इनका अघोषित नियंत्रण बताया जाता है।
सरगना –वाराणसी से चलता है खेल
सिंडिकेट का मास्टरमाइंड खुद को पत्रकार बताता है, लेकिन पत्रकारिता इसके लिए केवल एक चादर है। असल में यह वाराणसी में बैठकर पूरे नेटवर्क की कमान चलाता है।
इसकी एक खास बात है "कभी खुद सामने नहीं आता, बस दूसरों को चलाता है।" लेकिन पर्दे के पीछे से यह खेल बहुत गहरे खेलता है।
एक प्रतिष्ठित डॉक्टर से अपनी बेटी की शादी करवाना चाहता था, पर जब डॉक्टर ने इंकार कर दिया, तो यह मामला ‘इज्जत’ से ‘बदले’ में बदल गया।
तब से सिंडिकेट सक्रिय हो गया फर्जी खबरें, बदनाम करने वाले पोस्ट, मरीजों को बहकाने का सिलसिला तेज़ हो गया।
लेकिन सरगना की सच्ची ताकत कहीं और है इसका एक करीबी मिष्ठान्न भंडार चलाता है, जो शहर के रसूखदार लोगों का ठिकाना है। उस मिष्ठान के मालिक का बेटा राष्ट्रीय पार्टी से जुड़ा एक सक्रिय नेता है।
यदि कोई उस दुकान या परिवार की आलोचना करता है, तो सरगना सोशल मीडिया पर झूठी और मनगढ़ंत कहानियां गढ़कर उसे बदनाम करने की मुहिम छेड़ देता है।
हाथी – दोपहर के बाद जागने वाला दलाल
"हाथी" नामक यह सदस्य दोपहर 2 बजे के बाद सक्रिय होता है। जौनपुर जंक्शन के अनारक्षित टिकट काउंटर पर ऐसे बैठता है जैसे कोई रेलवे का स्थायी कर्मचारी हो।
टिकट दिलवाने का खेल, रेलवे के सिस्टम का दुरुपयोग और सब कुछ खुल्लमखुल्ला।
फिर यह जिला अस्पताल पहुंचता है, इमरजेंसी रजिस्टर चेक करता है, और मरीजों की जानकारी उठाकर लौटता है अपने तथाकथित "न्यूज़ रूम" में जहाँ खबरें नहीं, धमकी की स्क्रिप्ट तैयार होती है।
मोहरा – अवैध अस्पतालों का गारंटर और सोशल मीडिया का नशेड़ी भस्मासुर
"मोहरा" केवल एक दलाल नहीं, बल्कि पूरे शहर में अवैध अस्पतालों और डायग्नोस्टिक सेंटर्स का एक चालाक गारंटर है। इसका काम सिर्फ सेटिंग तक सीमित नहीं — यह खुद को स्वास्थ्य विभाग से जुड़ा बताकर एक नकली वैधता का पर्दा ओढ़ता है। लेकिन असली खेल परदे के पीछे चलता है।स्वामीबाग और नगर पालिका के कुछ कर्मचारियों के साथ इसकी गुप्त मिलीभगत है। जब कोई अवैध अस्पताल दबाव में आता है, मोहरा फोन घुमाकर ‘दिखावे’ की कार्रवाई करवा देता है — जैसे स्वास्थ्य विभाग तुरंत सक्रिय हो गया हो। फिर वहीं से मोटी रकम वसूलता है, और कार्रवाई रुक जाती है।
लेकिन मोहरा की दुनिया सिर्फ दलाली तक सीमित नहीं।
उसके साथ एक और साथी है — जो कभी दवा बेचने का कार्य करता था, अब उसका 'ग्राउंड मैन' बन चुका है। ये दोनों दिनभर नशे की हालत में बाइक पर शहर भर में घूमते रहते हैं जिसे ये खुद "रेकी" करते हैं।
ये लोग कौन डॉक्टर कितना कमा रहा है,किस दुकान पर भीड़ है,कौन नया क्लिनिक खुला है,और कौन ‘कमजोर है इन सबकी जानकारी जुटाकर अपने सरगना तक पहुंचाते हैं। और दिनभर सोशल मीडिया पर बकवास और धमकी भरे पोस्ट डालते रहते हैं।"मोहरा" फेसबुक पर खुद को पत्रकार बताता है, जबकि उसकी टाइमलाइन जहरीली धमकियों और झूठे आरोपों से भरी होती है।इसकी खास रणनीति है पहले वसूली की कोशिश, फिर धमकी, और फिर बदनाम करने वाली पोस्ट।जिससे आम दुकानदार, डॉक्टर या क्लिनिक वाले डरकर उसे पैसे दे दें बस खबर मत लिखो
मोहरा अब सिर्फ एक ‘संपर्क सूत्र’ नहीं, बल्कि एक ऐसा नशेड़ी भस्मासुर बन चुका है जो अवैध कारोबार, सोशल मीडिया और साजिश की एक गंदी त्रिकोणीय दुनिया में जी रहा है और अपने पीछे कई मासूमों की तबाही छोड़ता जा रहा है।
छाया – झूठी खबरों का अदृश्य लेखक
"छाया" नामक यह सदस्य सबसे रहस्यमयी है। खुद को कभी सामने नहीं लाता, लेकिन सोशल मीडिया और लोकल पोर्टल्स पर फर्जी खबरों की बाढ़ छोड़ देता है।
इसकी कहानी भी दिलचस्प है
कभी डिश टीवी कनेक्शन जोड़ने का काम करता था। फिर खुद को पत्रकारों का गुरु घोषित कर बैठा।
अब यह ‘गुरु’ अपने अनुयायियों को गलत जानकारी देकर भ्रमित करता है और फर्जी खबरें फैलाता है।
इसका दावा होता है कि वह पत्रकारिता का ‘सच्चा सिपाही’ है, जबकि हकीकत में यह ‘कीबोर्ड से कत्ल’ करने वाला अदृश्य हत्यारा है।
सांप – धमकी देने वाला मुखौटा
इस गिरोह का ‘फील्ड थ्रेट सिस्टम’ है "सांप"।
सुलह समझौता कर लो, नहीं तो अंजाम भुगतना पड़ेगा" — इसकी पहचान बन चुकी है।
वह पीड़ितों, वादियों और गवाहों को धमकी देता है। केस वापसी के लिए दबाव बनाता है और जबरदस्ती के रास्ते से न्याय प्रक्रिया को बाधित करता है।
काला कलम – फर्जी पत्रकार और दरबारी
"काला कलम" का किरदार बहुत अनूठा है।
यह खुद को पत्रकार कहता है, लेकिन इसके पास न कोई प्रेस मान्यता, न कोई पत्रकारीय प्रशिक्षण।
असल में यह एक मदरसा भी चलाता है, और अक्सर स्थानीय धार्मिक दरबारों में दरबारी की भूमिका निभाता है।
यानी कहीं धार्मिक छवि का इस्तेमाल, तो कहीं पत्रकारिता की आड़ दोनों रास्तों से यह वसूली करता है।दुकानों, डॉक्टरों, दुकानदारों को धमकाकर कहता है
"समाचार में नाम आ जाएगा, अगर कुछ न दिया तो समझो बर्बाद!"
क्या है प्रशासन की भूमिका?
इन सबके बीच, सबसे बड़ा सवाल यही है प्रशासन चुप क्यों है?
रेलवे प्रशासन, स्वास्थ्य विभाग और स्थानीय निकाय कोई इन पर उंगली क्यों नहीं उठाता?
क्या ये चुप्पी डर है, दबाव है या फिर मिलीभगत?
अगला भाग जल्द
सरगना की रणनीति और कैसे वह पत्रकारिता को बना चुका है निजी हथियार
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