ताजिया, क़ैद और मोज़्ज़ा 18 व 19 सफ़र के ऐतिहासिक जुलूस की अनसुनी कहानी इस्लाम का चौक जहां से शुरू हु...
ताजिया, क़ैद और मोज़्ज़ा 18 व 19 सफ़र के ऐतिहासिक जुलूस की अनसुनी कहानी
इस्लाम का चौक जहां से शुरू हुआ 18 व 19 सफ़र का ऐतिहासिक चेहल्लुम जुलूस
तामीर हसन शीबू
जौनपुर। मोहल्ला बाज़ार भुआ में स्थित इस्लाम का चौक आज भी धार्मिक आस्था, इतिहास और परंपरा का अद्वितीय प्रतीक है। इसका नाम मोहम्मद इस्लाम इब्ने शेख बहादुर अली के नाम पर रखा गया, जो अपने समय के मशहूर पहलवान, मज़हबी मुआमलात में सख़्त और बेहतरीन जाकिर-ए-सय्यिद-ए-शोहदा थे। वे इमामबाड़ा चमन के जाकिर भी रहे। इस चौक की पहचान खासतौर से चेहल्लुम के ताजिये और मुरादें पूरी होने की मान्यता के लिए है।
गिरफ्तारी से आज़ादी तक का मोज़्ज़ा
सालों पहले, शब-ए-आशूर को अपने घर के सामने ताजिया रखकर इमामबाड़ा चमन में ज़ाकिरी के बाद, शेख मोहम्मद इस्लाम जब सब्ज़ी बाज़ार के अज़ाखाने से लौट रहे थे, तो काज़ी मोहम्मद जमिउल्लाह के पुत्र मुल्ला खालिलुल्लाह काज़ी ने दंगे-फसाद के डर से उन्हें गिरफ्तार कर लिया। सिफारिशों के बावजूद उन्हें रिहा नहीं किया गया।
क़ैद के दौरान, 19 सफ़र को दुआ में मशगूल शेख इस्लाम को बेहोशी में एक आवाज़ सुनाई दी जाओ, तुम आज़ाद हो । होश आने पर उन्होंने खुद को बेड़ियों और क़ैद से मुक्त पाया। पहरेदारों ने काज़ी को खबर दी, लेकिन उन्हें रोकने की बजाय छोड़ दिया गया। घर लौटकर उन्होंने मजलिस पढ़ी और उसी दिन चौक का ताजिया उठाया गया।
ऐतिहासिक जुलूस का रास्ता तय हुआ
काज़ी जमीलुल्लाह की इच्छा पर ताजिया उनके दरवाजे से होकर सदर इमामबाड़ा ले जाया गया। यह जुलूस बाज़ार भुआ, मोहल्ला चत्तर, कोठिया, टोला, बार दुअरिया, हमाम दरवाज़ा, अजमेरी, बाज़ार अलिफ़ खान, काज़ी की गली, उमर खान, मस्जिद कलां, अर्ज़क, नकी फाटक, बाग-ए-हाशिम, दलियाना टोला, शेख बुरहानुद्दीन पुरा, मक़दूम शाह बड़े, बाज़ार टोला, रानी बाज़ार, नासिर ख्वान, छत्री घाट, नवाब ग़ाज़ी का कुआं, जगदीशपुर, बेगम गंज होते हुए सदर इमामबाड़ा तक पहुँचा।
यही रास्ता 19 सफ़र के चेहल्लुम जुलूस के लिए स्थायी हो गया, जिसमें शहर के अन्य अज़ाखानों के ताजिये भी शामिल होने लगे।
आज भी बरकरार है परंपरा
आज के दौर में यह ताजिया 18 सफ़र (शब-ए-19) को रात 8 बजे रखा जाता है और रातभर मातम, ग़िरया और सीना-ज़नी होती है। 19 सफ़र को जुहर के बाद सोज़ख़्वानी और मजलिस के पश्चात जुलूस उसी ऐतिहासिक रास्ते से निकलता है। लाखों की तादाद में हिंदू-मुस्लिम अकीदतमंद शामिल होते हैं। इस ताजिये के साथ एक तुर्बत भी उठती है, जिससे जुड़ा एक मोज़्ज़ा आज भी लोगों की आस्था का केंद्र है।
यह परंपरा इस बात का पैग़ाम देती है कि नेक नीयत और अकीदत के साथ शोहदा-ए-कर्बला की अजादारी करने वाला हर शख़्स, अल्लाह की मदद से हर क़ैद से आज़ाद हो सकता है जैसा कि शेख मोहम्मद इस्लाम मरहूम के साथ हुआ।
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