मरकज़ी सीरत कमेटी का चुनाव 3 अगस्त को, फ़िरोज़ अहमद पप्पू ने सदर पद के लिए ठोकी दावेदारी शाही अटाला मस्जिद में होगा मतदान, समाज बोला – “सदर...
मरकज़ी सीरत कमेटी का चुनाव 3 अगस्त को, फ़िरोज़ अहमद पप्पू ने सदर पद के लिए ठोकी दावेदारी
शाही अटाला मस्जिद में होगा मतदान, समाज बोला – “सदर ऐसा हो जो राजनीति से पाक हो”
तामीर हसन शीबू
जौनपुर। जनपद की ऐतिहासिक और सम्मानित मरकज़ी सीरत कमेटी का चुनाव आगामी 3 अगस्त को शाही अटाला मस्जिद में होने जा रहा है। इस बार चुनाव को लेकर आम जनमानस में खासा उत्साह और जागरूकता देखी जा रही है। कमेटी के सदर पद के लिए कई नाम चर्चा में हैं, लेकिन सबसे मुखर दावेदारी फ़िरोज़ अहमद उर्फ़ पप्पू की ओर से की गई है, जो वर्तमान में नायब सदर के रूप में कमेटी में सक्रिय भूमिका निभा चुके हैं।
फ़िरोज़ अहमद ने लोगों से दुआओं और समर्थन की गुज़ारिश करते हुए कहा कि "हमारा मक़सद है कि कमेटी को ईमानदारी, पारदर्शिता और समाजसेवा की राह पर आगे बढ़ाया जाए।" उन्होंने यह भी साफ़ किया कि यह मंच किसी की सियासी महत्वाकांक्षा का ज़रिया नहीं बनना चाहिए।
शहर के धार्मिक व सामाजिक वर्गों का कहना है कि इस बार कमेटी को ऐसा लीडर चाहिए जो साफ़-सुथरी छवि वाला, गैर-सियासी और सबको साथ लेकर चलने वाला हो।
एक बुजुर्ग नागरिक ने कहा, "सीरत कमेटी का सदर कोई सियासी एजेंडे वाला नहीं होना चाहिए, बल्कि वो होना चाहिए जो हर तबके को बराबरी से देखे और मंच को दीन की ख़िदमत का ज़रिया बनाए।"
चुनावी माहौल के साथ-साथ आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी शुरू हो गया है। कुछ लोगों ने एक दावेदार पर आरोप लगाया है कि वह दावतों का सहारा लेकर लोगों को प्रभावित कर सदर की कुर्सी तक पहुँचना चाहता है।
इस पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए समाज के एक वर्ग ने कहा, "दावत से कोई सच्चा रहनुमा नहीं बनता, उम्मत अब जाग चुकी है। यह चुनाव न ज़ायके का है, न दिखावे का—यह सेवा और सच्चाई का इम्तिहान है।"
शहर के युवा वर्ग में चुनाव को लेकर अभूतपूर्व जागरूकता देखी जा रही है। युवा चाहते हैं कि इस बार कमेटी में ईमानदार, जवाबदेह और दीनी सेवाओं से जुड़े व्यक्ति को ज़िम्मेदारी मिले। साथ ही, चुनाव प्रक्रिया को निष्पक्ष और पारदर्शी बनाए जाने की भी ज़ोरदार मांग उठ रही है।
3 अगस्त को होने वाला यह चुनाव सिर्फ एक सदर चुनने का नहीं, बल्कि जौनपुर की सीरत, समाज और सोच का आईना बनने जा रहा है। कौन बनेगा सदर? यह अब सिर्फ नाम का सवाल नहीं, नीयत, नीति और नज़रिया का फैसला होगा
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