फिर लगा विवादों में घिरा मेला: बीआरपी इंटर कॉलेज मैदान में आयोजित ड्रीमलैंड प्रदर्शनी पर उठे सवाल, 2017 में हो चुकी है अनुमति रद्द उच्च न...
फिर लगा विवादों में घिरा मेला: बीआरपी इंटर कॉलेज मैदान में आयोजित ड्रीमलैंड प्रदर्शनी पर उठे सवाल, 2017 में हो चुकी है अनुमति रद्द
उच्च न्यायालय और नगर मजिस्ट्रेट के आदेश के बावजूद शैक्षणिक संस्थान के मैदान में व्यावसायिक आयोजन, प्रशासन की भूमिका संदिग्ध
तामीर हसन शीबू
जौनपुर।शहर के बीचोबीच स्थित बीआरपी इंटर कॉलेज के मैदान में इन दिनों एक बार फिर "ड्रीमलैंड प्रदर्शनी एवं मेला" लगाया गया है, लेकिन यह आयोजन अब कानूनी और नैतिक दोनों स्तरों पर गंभीर सवालों के घेरे में आ गया है। यह वही मैदान है जिसके संबंध में वर्ष 2017 में नगर मजिस्ट्रेट कार्यालय ने स्पष्ट रूप से मेला या किसी प्रकार की व्यावसायिक गतिविधि को प्रतिबंधित करते हुए पहले दी गई अनुमति को निरस्त कर दिया था। बावजूद इसके, आठ साल बाद 2025 में उसी स्थान पर मेला आयोजित होना न सिर्फ प्रशासनिक अनदेखी को उजागर करता है बल्कि न्यायिक आदेशों की अवहेलना का भी उदाहरण प्रस्तुत करता है।
2017: जब अनुमति हुई थी रद्द
वर्ष 2017 में आयोजक मनोज कुमार सिंह पुत्र स्व. समर बहादुर सिंह को बीआरपी इंटर कॉलेज मैदान में ड्रीमलैंड फेयर लगाने की अनुमति नगर मजिस्ट्रेट कार्यालय द्वारा प्रदान की गई थी। परंतु इसके खिलाफ श्री सत्यप्रकाश सिंह और श्री आनंद शंकर श्रीवास्तव द्वारा आपत्तियाँ दर्ज की गईं। मामले की सुनवाई में दोनों पक्षों को बुलाकर उनका पक्ष सुना गया और अभिलेखीय साक्ष्यों तथा न्यायिक आदेशों के आधार पर स्पष्ट किया गया कि—
बीआरपी इंटर कॉलेज की भूमि राजस्व अभिलेखों में "कायस्थ पाठशाला जौनपुर" के नाम पर दर्ज है।
तत्कालीन प्रधानाचार्य डॉ. सुभाषचंद्र सिंह ने लिखित रूप में स्पष्ट किया कि उन्होंने किसी भी व्यक्ति को मेला आयोजित करने की अनुमति नहीं दी है।
उच्च न्यायालय इलाहाबाद की रिट याचिका संख्या 26430/2015 में स्पष्ट निर्देश है कि शैक्षणिक संस्थानों की भूमि का उपयोग व्यावसायिक गतिविधियों के लिए नहीं किया जा सकता।
उक्त तथ्यों के आधार पर 9 अगस्त 2017 को नगर मजिस्ट्रेट, जौनपुर द्वारा दी गई अनुमति स्पष्ट रूप से निरस्त कर दी गई थी।
⚖️ उच्च न्यायालय का स्पष्ट आदेश
उक्त मामले में उच्च न्यायालय की टिप्पणी विशेष रूप से उल्लेखनीय है जिसमें कहा गया
> "The field of an institution is meant for the students and is certainly not meant for carrying out commercial activities like holding a fair..."
अर्थात संस्थान की भूमि छात्रों की गतिविधियों के लिए होती है, न कि मेले या किसी व्यावसायिक आयोजन के लिए। न्यायालय ने ऐसे आयोजनों की अनुमति को अनुचित बताते हुए भविष्य में किसी भी ऐसे आयोजन पर रोक लगाने की हिदायत दी थी।
2025: फिर वही गलती दोहराई गई?
अब वर्ष 2025 में एक बार फिर उसी कॉलेज परिसर में मेला लगना शुरू हो गया है। जहां न कोई नया प्रशासनिक आदेश सार्वजनिक किया गया है और न ही पुराने आदेशों को खारिज किया गया है। ऐसे में सबसे बड़ा प्रश्न यह उठता है कि—
क्या पुराने आदेशों को दरकिनार कर मेला लगाने की अनुमति दी गई है?
अगर नहीं, तो यह आयोजन पूरी तरह अवैध और न्यायिक आदेशों की सीधी अवहेलना है।
प्रशासन ने अनुमति कैसे दी और क्या जिला प्रशासन व पुलिस को इस पर जानकारी है?
शैक्षणिक वातावरण पर असर
विद्यालय प्रशासन और शिक्षकों का मानना है कि इस तरह के आयोजनों से—
विद्यार्थियों की पढ़ाई पर बुरा असर पड़ता है।
भीड़भाड़ और अस्थायी दुकानें स्कूल परिसर की सुरक्षा और अनुशासन को प्रभावित करती हैं।
आसपास के क्षेत्र में यातायात बाधित होता है और असामाजिक तत्वों का जमावड़ा भी बढ़ता है।
❓ प्रशासन मौन क्यों?
स्थानीय नागरिकों और शिक्षकों का कहना है कि जब इतने स्पष्ट प्रशासनिक व न्यायिक आदेश पहले से उपलब्ध हैं, तो इस बार की अनुमति कैसे दी गई? क्या फिर से कोई अनुचित दबाव या राजनीतिक संरक्षण इसके पीछे है?
इस आयोजन की वैधता पर प्रश्नचिह्न लगने के बाद अब आमजन यह जानना चाहते हैं कि क्या नगर मजिस्ट्रेट या जिलाधिकारी ने इस बार कोई नई अनुमति दी है?अगर नहीं, तो किसके आदेश पर यह मेला लग रहा है?क्या यह न्यायालय की अवमानना का मामला नहीं बनता?
जनहित में उठी मांग निष्पक्ष हो जांच
विवाद गहराता जा रहा है। नागरिकों ने मांग की है कि इस पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच कराई जाए।यदि अनुमति अवैध है तो आयोजन को तत्काल रोका जाए।2017 के आदेशों के उल्लंघन के लिए संबंधित अधिकारियों के विरुद्ध कार्यवाही की जाए।
बीआरपी इंटर कॉलेज का मैदान शिक्षा का केंद्र है, न कि व्यापार का अड्डा। यदि न्यायालय और प्रशासन के पूर्व आदेशों की धज्जियाँ उड़ाकर दोबारा मेला लगाया गया है, तो यह न केवल प्रशासनिक लापरवाही बल्कि कानूनी प्रणाली के लिए भी चुनौती है। अब देखना यह है कि जिला प्रशासन इस पर क्या रुख अपनाता है—सत्ता के दबाव में चुप रहता है या कानून के शासन को बनाए रखने के लिए कदम उठाता है।
COMMENTS