"स्कूल चलो अभियान" बना औपचारिकता का प्रतीक – नामांकन बढ़ाने की जगह आयोजन बना दिखावा तामीर हसन शीबू जौनपुर (बदलापुर)। बदलापुर ब्ल...
"स्कूल चलो अभियान" बना औपचारिकता का प्रतीक – नामांकन बढ़ाने की जगह आयोजन बना दिखावा
तामीर हसन शीबू
जौनपुर (बदलापुर)। बदलापुर ब्लॉक के इंग्लिश मीडियम प्राथमिक विद्यालय, पुरानी बाजार एवं कम्पोजिट विद्यालय, हिम्मतपुर में "स्कूल चलो अभियान" के तहत नामांकन एवं अभिभावक सम्मान समारोह का आयोजन तो किया गया, लेकिन यह कार्यक्रम भी पूर्ववर्ती अभियानों की तरह केवल औपचारिकता तक ही सीमित नजर आया।
कार्यक्रम में बड़ी-बड़ी बातें तो हुईं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही कहती है। विद्यालयों की दुर्दशा, शिक्षक अनुपस्थिति, बुनियादी सुविधाओं की कमी और बच्चों की कम उपस्थिति जैसे मुद्दों पर कोई ठोस चर्चा या समाधान देखने को नहीं मिला।
नामांकन के आंकड़ों का सच छिपाया गया
सूत्रों की मानें तो कई विद्यालयों में फर्जी नामांकन दिखाकर आंकड़े बढ़ाने की कोशिश की जाती है, ताकि अधिकारियों की वाहवाही लूटी जा सके। लेकिन इन नामांकित बच्चों की वास्तविक उपस्थिति बेहद कम होती है, जिसे न तो प्रशासन गंभीरता से लेता है और न ही स्कूल प्रबंधन।
अभिभावकों का सम्मान या औपचारिक फोटोशूट?
अभिभावक सम्मान समारोह भी एक तरह का दिखावटी आयोजन बनकर रह गया। जिन्हें मंच पर बुलाया गया, उनमें कई ऐसे अभिभावक थे जो खुद यह नहीं जानते थे कि उनके बच्चों की स्कूल में कितनी उपस्थिति है। कुछ तो केवल स्थानीय रसूख के चलते मंच तक पहुंचे, न कि शिक्षा में योगदान के आधार पर।
शिक्षा नहीं, प्रचार प्राथमिकता में
ऐसे कार्यक्रमों में असल मकसद बच्चों को स्कूल लाना नहीं, बल्कि मीडिया कवरेज और सामाजिक छवि बनाना होता है। कार्यक्रम के दौरान कई अधिकारी और शिक्षक मोबाइल पर व्यस्त रहे, जबकि मंच से शिक्षा की दुहाई दी जा रही थी।
स्थानीय लोगों में नाराजगी
क्षेत्र के कई जागरूक नागरिकों ने सवाल उठाया कि आखिर इन अभियानों से वास्तविक लाभ किसे मिल रहा है? बच्चों की शिक्षा और भविष्य के नाम पर हो रहे ये आयोजन केवल सरकारी धन और समय की बर्बादी हैं।
"स्कूल चलो अभियान" जैसे महत्वपूर्ण प्रयास तब तक सार्थक नहीं हो सकते जब तक उन्हें गंभीरता और ईमानदारी से लागू न किया जाए। केवल फोटो खिंचवाने और खबर छपवाने से न तो बच्चों का भविष्य संवरेगा और न ही शिक्षा व्यवस्था सुधरेगी।
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