क्या बदल जाएंगे जौनपुर कांग्रेस के जिला और शहर अध्यक्ष आक्रोश की चिंगारी लखनऊ से दिल्ली तक तामीर हसन शीबू जौनपुर : उत्तर प्रदेश में कांग्...
क्या
बदल जाएंगे जौनपुर कांग्रेस के जिला और शहर अध्यक्ष
आक्रोश की चिंगारी लखनऊ से दिल्ली तक
तामीर हसन शीबू
जौनपुर: उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी के संगठनात्मक बदलावों के बाद से ही जौनपुर कांग्रेस में भारी असंतोष देखने को मिल रहा है। हाल ही में घोषित नए जिला और शहर अध्यक्षों को लेकर पार्टी कार्यकर्ताओं में नाराजगी इस कदर बढ़ गई है कि इसकी गूंज अब लखनऊ से लेकर दिल्ली तक पहुंच चुकी है।
पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं और स्थानीय कार्यकर्ताओं ने इस फैसले का खुलकर विरोध किया है, जिससे संगठन के भीतर गहमागहमी तेज हो गई है।हाल ही में कांग्रेस पार्टी ने उत्तर प्रदेश में अपनी नई संगठनात्मक टीम की घोषणा की थी।
इस सूची में नए जिला अध्यक्ष के रूप में प्रमोद सिंह और शहर अध्यक्ष के रूप में आरिफ खान के नाम घोषित किए गए। हालांकि, जैसे ही इनके नामों की आधिकारिक घोषणा हुई,कांग्रेस कार्यकर्ताओं के बीच असंतोष की लहर दौड़ गई।
पार्टी के भीतर से ही विरोध के स्वर तेज हो गए, और देखते ही देखते यह मामला प्रदेश और केंद्रीय नेतृत्व तक जा पहुंचा।
कांग्रेस के कई वरिष्ठ कार्यकर्ताओं का कहना है कि नए नियुक्त अध्यक्षों में संगठन को संभालने और मजबूत करने की क्षमता नहीं है। उनका मानना है कि पार्टी को पुनः जीवंत करने के लिए अनुभवी और सक्रिय नेतृत्व की जरूरत है, जो न केवल कार्यकर्ताओं को एकजुट रख सके, बल्कि आगामी चुनावों में कांग्रेस को मजबूत स्थिति में भी ला सके।
कई कांग्रेसी नेताओं ने आरोप लगाया है कि इस नियुक्ति में जमीनी कार्यकर्ताओं की अनदेखी की गई है।
विरोध करने वाले नेताओं का कहना है कि प्रमोद सिंह और आरिफ खान में संगठनात्मक अनुभव और कार्यकर्ताओं को जोड़ने की क्षमता नहीं है, जिससे पार्टी को नुकसान हो सकता है। पार्टी कार्यकर्ताओं का यह भी कहना है कि यदि इन्हीं नेताओं के नेतृत्व में संगठन आगे बढ़ता रहा, तो आने वाले चुनावों में कांग्रेस की स्थिति और कमजोर हो सकती है।
आक्रोश की चिंगारी लखनऊ से दिल्ली तक
शुरुआत में यह असंतोष केवल जौनपुर तक ही सीमित था, लेकिन धीरे-धीरे इस विरोध की गूंज लखनऊ और दिल्ली तक पहुंच गई। कांग्रेस के प्रदेश और राष्ट्रीय नेतृत्व को भी इन विरोधों की जानकारी मिल चुकी है
। सूत्रों के अनुसार, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और केंद्रीय नेतृत्व तक यह संदेश पहुंचाया गया है कि यदि यह फैसला वापस नहीं लिया गया, तो पार्टी को जिले में जबरदस्त आंतरिक कलह का सामना करना पड़ सकता है।
तो क्या बदल जाएगा कांग्रेस का फैसला?
कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने इस पूरे विवाद पर गंभीरता से विचार करना शुरू कर दिया है। सूत्रों के मुताबिक, पार्टी इस विरोध को हल्के में नहीं ले रही और जल्द ही इस पर कोई बड़ा फैसला लिया जा सकता है।
यदि विरोध जारी रहा तो संभव है कि कांग्रेस अपने घोषित जिला और शहर अध्यक्षों के नाम वापस ले सकती है।
हालांकि, इस पूरी स्थिति में पार्टी नेतृत्व दोराहे पर खड़ा नजर आ रहा है। एक ओर, अगर वर्तमान अध्यक्षों को हटाया जाता है, तो इससे यह संदेश जाएगा कि पार्टी कार्यकर्ताओं के दबाव में काम कर रही है।
दूसरी ओर, यदि बदलाव नहीं किया गया, तो स्थानीय असंतोष और आंतरिक कलह बढ़ सकती है, जिसका नुकसान आगामी चुनावों में उठाना पड़ सकता है।
एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा,यह फैसला पूरी तरह से जमीनी हकीकत को नजरअंदाज करके लिया गया है।
पार्टी को मजबूत करने के लिए मजबूत नेतृत्व की जरूरत होती है, लेकिन यहां बिना किसी ठोस आधार के नियुक्तियां कर दी गई हैं।
अगर जल्द ही बदलाव नहीं किया गया, तो कांग्रेस को जिले में भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। वहीं, एक युवा कांग्रेसी कार्यकर्ता का कहना है,
"हम चाहते हैं कि कांग्रेस जौनपुर में दोबारा मजबूत हो, लेकिन अगर गलत नेतृत्व रहेगा, तो कार्यकर्ता भी धीरे-धीरे दूर होते जाएंगे। हमें ऐसा नेतृत्व चाहिए जो पार्टी के लिए पूरी तरह समर्पित हो।
अगर कांग्रेस अपने फैसले पर अडिग रहती है, तो विरोध करने वाले नेताओं और कार्यकर्ताओं में असंतोष और बढ़ सकता है। इससे पार्टी को जौनपुर में और भी कमजोर होने का खतरा रहेगा।अगर कांग्रेस नेतृत्व इन नियुक्तियों को बदलता है, तो इससे एक सकारात्मक संदेश जा सकता है कि पार्टी कार्यकर्ताओं की भावनाओं को महत्व देती है। लेकिन इससे यह भी साबित होगा कि पार्टी कार्यकर्ताओं के दबाव में काम कर रही है, जिससे भविष्य में अनुशासनहीनता को बढ़ावा मिल सकता है।
विपक्षी दलों की प्रतिक्रिया:
इस पूरे घटनाक्रम पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और समाजवादी पार्टी (सपा) नजर बनाए हुए हैं। विपक्षी दल इस आंतरिक कलह को कांग्रेस की कमजोरी के रूप में देख सकते हैं और इसे आगामी चुनावों में मुद्दा बना सकते हैं।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस हाईकमान इस मुद्दे पर क्या रुख अपनाता है। क्या कार्यकर्ताओं की आवाज सुनी जाएगी, या फिर नए नेतृत्व के साथ ही संगठन आगे बढ़ेगा? आने वाले दिनों में कांग्रेस की स्थिति जौनपुर में किस ओर जाती है, यह तय करेगा कि पार्टी यहां कितनी मजबूत हो पाती है।
क्या कांग्रेस अपने फैसले में बदलाव करेगी, या फिर कार्यकर्ताओं को ही इस फैसले के साथ चलना होगा? यह तो आने वाला समय ही बताएगा।
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